AI Tomorrow: Innovations & Effects in Hindi
जैसे-जैसे हम भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) न केवल हमारे जीवन का हिस्सा बन रहा है, बल्कि यह हमारे सोचने, काम करने और जीने के तरीके को भी पूरी तरह से बदल रहा है। आज एआई केवल स्मार्टफोन, स्मार्ट होम या वॉयस असिस्टेंट तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका उपयोग स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यापार, और सरकारी कार्यों में भी बड़े पैमाने पर हो रहा है।
भविष्य में एआई के संभावित प्रभाव को समझने के लिए हमें उन तकनीकों को समझना होगा, जो आने वाले समय में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं। आइए, इस ब्लॉग में हम कुछ प्रमुख नई तकनीकों और उनके संभावित प्रभावों पर नजर डालते हैं, जो भविष्य के एआई को आकार देंगी।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का सफर बेहद रोमांचक और तेजी से आगे बढ़ता हुआ रहा है। 1950 के दशक से शुरू होकर, जब क्रिस्टोफर स्ट्रैची ने पहली बार चेकर्स गेम खेलने वाला एआई प्रोग्राम बनाया, से लेकर आज के आधुनिक दौर तक, एआई ने तकनीकी दुनिया में क्रांति ला दी है। IBM के डीप ब्लू ने 1997 में शतरंज के महान खिलाड़ी गैरी कास्परोव को हराया, और 2011 में IBM के वॉटसन ने “जियोपार्डी!” जैसे क्विज शो में जीत हासिल की। ये शुरुआती सफलताएँ एआई के विकास की महत्त्वपूर्ण कड़ियाँ थीं, लेकिन आज हम एक और बड़ी छलांग के दौर में हैं, जहाँ एआई हमारे जीवन के हर क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है।
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Toggleएआई का विकास: कहाँ से शुरू हुआ?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का सफर 1951 में मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के फेरांटी मार्क I कंप्यूटर पर चेकर्स खेलने वाले एआई प्रोग्राम के साथ शुरू हुआ था। यह प्रोग्राम क्रिस्टोफर स्ट्रैची द्वारा लिखा गया था और यह एआई की दुनिया में एक नई शुरुआत थी। यह वो दौर था जब कंप्यूटरों का उपयोग केवल गणनाएँ करने के लिए किया जाता था, लेकिन चेकर्स जैसे खेल को खेलने की क्षमता ने दिखाया कि कंप्यूटर केवल गणनाओं तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि जटिल निर्णय लेने और सोचने के लिए भी सक्षम हो सकते हैं।
एआई का आरंभिक दौर: 1950-1980
1950 के दशक से 1980 के दशक तक, एआई का विकास धीरे-धीरे हुआ। उस समय कंप्यूटर की सीमित शक्ति और डेटा की कमी के कारण, एआई की क्षमताएँ भी सीमित थीं। हालांकि, शोधकर्ता और वैज्ञानिक लगातार इस दिशा में काम कर रहे थे कि कैसे कंप्यूटर को इंसानों की तरह सोचने और निर्णय लेने के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। एलन ट्यूरिंग, जिन्हें एआई का पितामह कहा जाता है, ने भी इस दिशा में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया। ट्यूरिंग ने एक ‘ट्यूरिंग टेस्ट’ का प्रस्ताव दिया, जिससे यह मापा जा सके कि क्या एक मशीन इंसान जैसी बुद्धिमत्ता प्रदर्शित कर सकती है।
1960 और 1970 के दशक में एआई का शोध मुख्य रूप से प्रतीकात्मक एआई (symbolic AI) पर केंद्रित था। यह एआई का प्रारंभिक मॉडल था, जिसमें गणनाओं के बजाय तर्क और नियमों का उपयोग किया जाता था। इसका मतलब था कि कंप्यूटर को सटीक निर्देश दिए जाते थे कि वह कैसे काम करे, और यह इंसानी तर्क पर आधारित होता था। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति को यह निर्णय लेना है कि कौन सा रास्ता लेना है, तो वह सभी विकल्पों पर विचार करेगा और फिर अपने अनुभव और तर्क के आधार पर निर्णय लेगा। इसी तरह के तर्क को मशीनों में लागू करने की कोशिश की जा रही थी।
डीप ब्लू की ऐतिहासिक जीत:
1997
एआई के विकास में एक बड़ा मोड़ तब आया जब IBM के सुपरकंप्यूटर डीप ब्लू ने 1997 में विश्व शतरंज चैंपियन गैरी कास्परोव को हरा दिया। यह घटना इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि शतरंज को एक बहुत ही जटिल खेल माना जाता है, जहाँ खिलाड़ियों को कई चालों और संभावनाओं के बारे में सोचना होता है। डीप ब्लू ने इंसान को हराकर यह दिखाया कि एआई इतनी जटिल परिस्थितियों में भी निर्णय लेने और खेल को जीतने की क्षमता रखता है।
डीप ब्लू की यह जीत केवल शतरंज के खेल में एआई की क्षमता को साबित करने के लिए नहीं थी, बल्कि यह तकनीक की दुनिया में एक बड़े बदलाव का प्रतीक थी। इससे यह सिद्ध हो गया कि एआई जटिल निर्णय लेने और अनिश्चित परिस्थितियों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकता है। डीप ब्लू की सफलता के पीछे मुख्य कारण उसकी ‘ब्रूट फोर्स’ विधि थी, जिसमें वह हर संभव चाल का आकलन करता था और सबसे बेहतर चाल चुनता था।
IBM वॉटसन की जीत: 2011
डीप ब्लू की जीत के बाद, एआई ने और भी कई महत्वपूर्ण सफलताएँ हासिल कीं। इनमें से एक बड़ी उपलब्धि 2011 में IBM वॉटसन की “जियोपार्डी!” गेम शो में जीत थी। यह जीत इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह शो केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित नहीं था, बल्कि इसमें भाग लेने के लिए भाषा को समझने, सवालों का सही मतलब निकालने, और फिर सही उत्तर देने की आवश्यकता थी।
वॉटसन ने यह दिखाया कि एआई केवल संख्याओं और गणनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसानी भाषा को समझ सकता है और तर्कसंगत उत्तर भी दे सकता है। “जियोपार्डी!” गेम शो में जीत का मतलब था कि अब एआई इंसानों के साथ संवाद कर सकता है, सवालों के जवाब दे सकता है, और जटिल विषयों को भी समझ सकता है। यह एआई के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी क्योंकि इससे यह साबित हुआ कि मशीनें अब इंसानी सोच और भाषा की जटिलताओं को भी समझने में सक्षम हैं।
एआई का मौजूदा दौर: मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग
डीप ब्लू और वॉटसन की सफलता के बाद, एआई ने मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग जैसी तकनीकों की मदद से और भी बड़ी छलांग लगाई। अब कंप्यूटरों को इंसानों की तरह सोचने के लिए नियमों की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वे डेटा का उपयोग करके खुद को प्रशिक्षित कर सकते हैं। मशीन लर्निंग के माध्यम से एआई को यह सिखाया जाता है कि कैसे खुद से सीखें और भविष्य में बेहतर निर्णय लें। डीप लर्निंग ने इसे और भी आसान बना दिया, जिससे एआई अब बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण कर सकता है और उससे जटिल समस्याओं को हल करने में सक्षम हो गया है।
अब एआई का इस्तेमाल हर क्षेत्र में हो रहा है, चाहे वह स्वास्थ्य सेवा हो, शिक्षा हो, व्यापार हो, या फिर मनोरंजन। चैटबॉट्स, वॉयस असिस्टेंट्स, और स्मार्ट डिवाइस जैसे नए उपकरण हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुके हैं, जो एआई की उन्नत क्षमताओं का प्रमाण हैं।
निष्कर्ष
1951 से शुरू होकर, एआई ने विज्ञान और तकनीक की दुनिया में कई नए आयाम स्थापित किए हैं। आज यह केवल गणनाएँ करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सोचने, समझने, और निर्णय लेने में भी इंसानों की मदद कर रहा है। डीप ब्लू और वॉटसन की ऐतिहासिक जीत ने यह सिद्ध कर दिया कि एआई में वह क्षमता है जो भविष्य में हमारे जीवन को और अधिक सरल और बेहतर बना सकती है।
कहानी: भविष्य की ओर कदम – एआई की दुनिया का सफर
सुबह की हल्की धूप खिड़की से भीतर आ रही थी। अमित अपने लैपटॉप के सामने बैठा था, और उसकी नजरें स्क्रीन पर चिपकी थीं। एक के बाद एक खबरें आ रही थीं— “एआई की वजह से नौकरियों का संकट?”, “क्या एआई बनेगा अगला सुपरहीरो?”, “एआई की मदद से बेहतर भविष्य?” अमित के मन में सवाल उमड़-घुमड़ रहे थे। “आखिर ये एआई कैसे हमारा भविष्य बदलने वाला है?” उसने खुद से पूछा।
व्यापार की दुनिया में एआई की क्रांति
अमित ने कॉफी का एक घूंट लिया और सोचा, “अब हर दूसरी कंपनी एआई का इस्तेमाल कर रही है।” और वाकई, वह गलत नहीं था। आज लगभग 55% कंपनियाँ किसी न किसी रूप में एआई को अपना चुकी हैं। उसने याद किया कि कैसे हाल ही में उसके बैंक में एक वर्चुअल असिस्टेंट ने उसकी हर समस्या का हल तुरंत दे दिया था। अब कोई कस्टमर केयर की लंबी लाइनों में इंतजार नहीं करना पड़ता था। कंपनी के निर्णय लेने का तरीका भी बदल रहा था। पहले जहाँ डेटा को समझने में हफ्तों लग जाते थे, अब एआई कुछ ही सेकंड में जटिल डेटा को सरल ग्राफ्स में बदल देता है, जिससे बॉस लोग तुरंत निर्णय ले सकते हैं।
अमित के एक दोस्त मनीष, जो कि एक स्टार्टअप चला रहा था, अक्सर कहता था, “अगर तुम जान जाओ कि एआई क्या कर सकता है, तो तुम उसकी मदद से किसी भी समस्या का हल निकाल सकते हो।” यह बात अमित के दिमाग में गूंज रही थी।
नौकरियों का संकट: डर या मौका?
लेकिन फिर अमित का ध्यान उन खबरों पर गया, जहाँ लोग एआई से नौकरियों के जाने का डर जता रहे थे। “क्या सच में मशीनें हमारी नौकरियाँ ले लेंगी?” उसने खुद से पूछा। वह जानता था कि कुछ काम, जैसे कि सेकरेटरी या डेटा एंट्री जॉब्स, खतरे में हैं। लेकिन दूसरी ओर, उसने सुना था कि मशीन लर्निंग स्पेशलिस्ट और इन्फॉर्मेशन सिक्योरिटी एनालिस्ट जैसे प्रोफेशन की मांग तेजी से बढ़ रही है।
अमित के दिमाग में एक ख्याल आया, “अगर एआई कुछ काम छीन रहा है, तो दूसरी तरफ नए अवसर भी तो पैदा कर रहा है।” उसकी सहेली, नेहा, जो कि एक डिजाइनर थी, उसे अक्सर कहती थी, “हमारे जैसे क्रिएटिव प्रोफेशनल्स के लिए एआई मददगार साबित हो सकता है, क्योंकि वह रूटीन काम कर देगा और हम क्रिएटिव काम पर ध्यान दे सकेंगे।”
डेटा और प्राइवेसी: एआई का दूसरा पहलू
तभी अमित का ध्यान एक और मुद्दे पर गया: डेटा प्राइवेसी। हर दिन हम किसी न किसी वेबसाइट या ऐप पर अपनी जानकारी देते रहते हैं। लेकिन क्या हम जानते हैं कि इन जानकारियों का क्या हो रहा है? कुछ समय पहले, उसने सुना था कि ओपनएआई पर यूरोप में डेटा प्राइवेसी के उल्लंघन का आरोप लगा था। इसके बाद, अमेरिका की सरकार ने एक “AI Bill of Rights” बनाया था, ताकि लोगों के डेटा की सुरक्षा की जा सके।
अमित सोच में पड़ गया, “अगर एआई से भविष्य बेहतर बन रहा है, तो हमें इसकी निगरानी और सही उपयोग भी सुनिश्चित करना होगा।”
कानूनी और नैतिक सवाल
अमित का फोन बजा— उसकी दोस्त, लीना का मैसेज था, जो कि एक म्यूज़िशियन थी। “सुनो, क्या तुमने सुना है? एआई की वजह से म्यूज़िक इंडस्ट्री में बड़ा बवाल मच रहा है। कई आर्टिस्ट्स ने ओपनएआई पर कॉपीराइट उल्लंघन का केस कर दिया है!” अमित यह खबर पहले भी पढ़ चुका था। लेखकों, संगीतकारों, और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसी कंपनियों ने एआई के खिलाफ कॉपीराइट के मुद्दे पर मुकदमे किए थे।
अमित ने सोचा, “अगर एआई बिना अनुमति के किसी की क्रिएटिविटी का इस्तेमाल कर रहा है, तो क्या यह सही है?” यह सवाल केवल क्रिएटिव इंडस्ट्री तक सीमित नहीं था; यह सभी के लिए एक बड़ा नैतिक सवाल था।
जलवायु परिवर्तन: एआई का सहयोग या संकट?
अमित अब अपने कमरे की खिड़की के पास बैठा था। बाहर मौसम कुछ बदला हुआ सा लग रहा था। उसने अचानक सोचा, “एआई क्या जलवायु परिवर्तन पर भी असर डाल रहा है?” उसने एक लेख में पढ़ा था कि एआई के उपयोग से सप्लाई चेन बेहतर हो सकती है और कार्बन उत्सर्जन घट सकता है। लेकिन दूसरी ओर, एआई मॉडल्स को ट्रेनिंग देने में भारी मात्रा में ऊर्जा खर्च होती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ सकता है।
अमित के मन में द्वंद्व चल रहा था। “तो क्या एआई पर्यावरण के लिए अच्छा है या बुरा?”
विभिन्न उद्योगों में एआई की भूमिका
अब अमित के दिमाग में सवालों की झड़ी लग चुकी थी। उसने सोचा, “आखिर कौन-कौन से उद्योगों में एआई सबसे ज्यादा असर डाल रहा है?”
- मैन्युफैक्चरिंग: एआई पहले से ही मैन्युफैक्चरिंग में क्रांति ला रहा है। रोबोटिक आर्म्स और प्रेडिक्टिव एनालिसिस की मदद से मशीनें लंबे समय तक बिना किसी रुकावट के चलती हैं।
- स्वास्थ्य सेवा: उसने सुना था कि एआई की मदद से डॉक्टर अब बीमारियों का पता जल्दी और सही तरीके से लगा सकते हैं। यहाँ तक कि अब दवाइयों की खोज भी तेजी से हो रही है।
- फाइनेंस: बैंकिंग और इंश्योरेंस सेक्टर में भी एआई धूम मचा रहा है। इससे फ्रॉड डिटेक्शन आसान हो गया है, और फाइनेंशियल एनालिसिस भी पहले से बेहतर हो चुका है।
- शिक्षा: उसने कल्पना की कि आने वाले समय में एआई शिक्षकों की मदद कैसे कर सकता है। एआई की मदद से छात्र अपनी जरूरतों के अनुसार पढ़ाई कर सकेंगे, और शिक्षकों को यह भी पता चलेगा कि कौन सा छात्र संघर्ष कर रहा है।
- मीडिया और जर्नलिज्म: अमित को याद आया कि उसने एक बार पढ़ा था कि द एसोसिएटेड प्रेस एआई का इस्तेमाल करके हज़ारों रिपोर्ट्स लिखवा रहा है।
- कस्टमर सर्विस: अमित के दिमाग में अपने बैंक का वो चैटबॉट आया, जिसने उसका काम मिनटों में हल कर दिया था।
- ट्रांसपोर्टेशन: उसने सुना था कि सेल्फ-ड्राइविंग कारें एआई की मदद से एक दिन हमारी सड़कों पर आम हो जाएँगी।
निष्कर्ष:
एआई का भविष्य
अमित खिड़की से बाहर देखते हुए सोचने लगा, “यह एआई हमारे भविष्य को कितने बड़े पैमाने पर बदलने वाला है।” चाहे व्यापार हो, शिक्षा हो, या फिर स्वास्थ्य सेवा—हर जगह एआई अपना जादू दिखा रहा था। लेकिन इसके साथ ही चुनौतियाँ भी थीं: नौकरियों का संकट, डेटा प्राइवेसी के सवाल, और पर्यावरण पर इसका असर।
अमित ने अपनी कॉफी का आखिरी घूंट लिया और मुस्कुराते हुए सोचा, “भविष्य चाहे जैसा भी हो, एक बात तय है—
कहानी: एआई के खतरे – उम्मीद या डर?
रोहित अपने कमरे में बैठा लैपटॉप पर काम कर रहा था, जब अचानक एक खबर उसके स्क्रीन पर फ्लैश हुई: “एआई के बढ़ते खतरे: क्या हमें डरना चाहिए?” उसने गहरी सांस ली और सोचा, “एआई ने तो दुनिया को बदल दिया है, लेकिन क्या वाकई इसके साथ खतरे भी बढ़ गए हैं?” यह सवाल उसके दिमाग में घूमने लगा। उसने अपना काम एक तरफ रखा और एआई के संभावित खतरों के बारे में सोचना शुरू किया।
नौकरियों का संकट: किसे मिलेगा काम, किसे नहीं?
रोहित को याद आया कि पिछले हफ्ते उसकी कंपनी में एक बड़ी मीटिंग हुई थी, जिसमें बताया गया था कि 2023 से 2028 के बीच 44% लोगों के कौशल बदल जाएंगे। यह सुनकर सभी सहकर्मियों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गई थीं। खासतौर पर, महिलाओं के लिए यह चुनौती और भी बड़ी थी। महिलाओं के कामों में एआई का असर पुरुषों से ज्यादा देखने को मिल रहा था। ऊपर से, एआई से संबंधित स्किल्स में भी महिलाओं और पुरुषों के बीच का अंतर साफ दिख रहा था।
रोहित को अपनी बहन साक्षी की चिंता होने लगी, जो एक मिड-लेवल मैनेजर थी। “अगर कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को नई स्किल्स नहीं सिखाएंगी, तो साक्षी और उसकी जैसी लाखों महिलाएँ क्या करेंगी?” उसने खुद से पूछा।
इंसानी पक्षपात: क्या एआई सही फैसला ले रहा है?
रोहित के दिमाग में एक और बात आई। उसने एक बार पढ़ा था कि एआई भी इंसानों की तरह भेदभाव कर सकता है। यह इसलिए होता है क्योंकि एआई को जो डेटा मिलता है, वह उसी तरह का परिणाम देता है। उदाहरण के लिए, फेसियल रिकग्निशन तकनीक में अक्सर देखा गया है कि यह गोरे लोगों को ज्यादा पहचानती है और गहरे रंग के लोगों को पहचानने में चूक करती है।
“अगर वैज्ञानिक शुरुआती चरण में इन भेदभावों को नहीं पहचानते और दूर नहीं करते, तो एआई तो और भी गलतियों को बढ़ावा देगा,” उसने सोचा। इससे समाज में असमानता और भी गहरी हो सकती है।
डीपफेक और झूठी जानकारी का जाल
तभी रोहित का फोन बजा। उसका दोस्त विकास, जो एक पत्रकार था, उससे एक अजीब घटना के बारे में बात कर रहा था। “तुम्हें पता है, आजकल डीपफेक वीडियो इतने असली लगते हैं कि लोग सच और झूठ में फर्क नहीं कर पा रहे हैं।” विकास ने बताया कि कई लोग अब झूठी खबरें और डीपफेक वीडियो देखकर सच मान लेते हैं।
रोहित ने सोचा, “अगर लोग डीपफेक को पहचान नहीं पाए, तो इसका गलत इस्तेमाल कितना खतरनाक हो सकता है।” उसने सुना था कि डीपफेक वीडियो का इस्तेमाल राजनीतिक प्रचार, धोखाधड़ी और यहाँ तक कि मासूम छात्रों को बदनाम करने के लिए भी किया जा चुका है।
डेटा प्राइवेसी: हमारी जानकारी कितनी सुरक्षित है?
रोहित ने अपने लैपटॉप पर एक आर्टिकल पढ़ा, जिसमें लिखा था कि एआई मॉडल्स को ट्रेन करने के लिए बहुत सारा डेटा चाहिए होता है। इस प्रक्रिया में अक्सर लोगों की निजी जानकारी का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि खतरनाक हो सकता है।
उसने 2024 के एक सर्वे के बारे में पढ़ा, जिसमें बताया गया था कि 48% कंपनियों ने अपने संवेदनशील डेटा को जनरेटिव एआई टूल्स में डाला था, और 69% कंपनियाँ इस बात से चिंतित थीं कि इससे उनकी इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी और कानूनी अधिकारों को नुकसान हो सकता है। “अगर एक भी डेटा ब्रीच हुआ, तो लाखों लोगों की जानकारी लीक हो सकती है। और इससे कंपनियाँ तो खतरे में पड़ेंगी ही, साथ ही ग्राहकों की निजता भी खत्म हो जाएगी,” उसने सोचा।
स्वचालित हथियार: एआई से युद्ध का नया चेहरा?
रोहित को यह भी याद आया कि कैसे एआई का इस्तेमाल स्वचालित हथियारों में किया जा रहा है। उसने एक बार खबर में देखा था कि ये हथियार बिना किसी भेदभाव के सैनिकों और आम नागरिकों में फर्क नहीं कर पाते। “अगर ये हथियार गलत हाथों में पड़ गए, तो इससे बड़ी तबाही मच सकती है,” उसने चिंता से सोचा।
रोहित की आँखों के सामने एक भयानक तस्वीर बनने लगी— एआई से नियंत्रित हथियार, जो बिना सोचे-समझे लोगों की जान ले रहे हों। यह सोचकर उसका दिल घबराने लगा।
सुपर इंटेलिजेंस: क्या एआई बन जाएगा हमारे ऊपर हावी?
अंत में, रोहित का दिमाग एक और डरावने ख्याल पर गया— “टेक्नोलॉजिकल सिंगुलैरिटी”। उसने एक साइंस-फिक्शन मूवी में देखा था कि कैसे सुपरइंटेलिजेंट मशीनें इंसानों पर हावी हो जाती हैं और उनकी पूरी जिंदगी को बदल देती हैं।
“क्या सच में ऐसा हो सकता है कि एआई एक दिन इतना ताकतवर हो जाए कि हम उसे समझ भी न पाएं?” उसने खुद से पूछा। “अगर एआई की सोच को हम ट्रैक ही न कर पाए, तो अगर कभी गलती हो गई तो उसे ठीक कैसे करेंगे?”
रोहित ने एक एआई विशेषज्ञ का इंटरव्यू पढ़ा था, जिसमें उसने कहा था, “फिलहाल तो एआई हमें नुकसान नहीं पहुँचाएगा, लेकिन 5-10 साल में तकनीक इतनी बदल जाएगी कि हमें फिर से इस पर विचार करना पड़ेगा।”
निष्कर्ष: एआई का सफर – खतरे और उम्मीदें
रोहित अपनी कुर्सी से उठकर खिड़की के पास चला गया। बाहर सूरज ढल रहा था, और उसके दिमाग में एआई के साथ जुड़े खतरे घूम रहे थे। “एआई ने हमारी दुनिया को बदला है, लेकिन इसके साथ ही कई नए सवाल और चिंताएँ भी सामने आई हैं,” उसने खुद से कहा।
“क्या एआई हमारे लिए भविष्य का सुनहरा रास्ता है, या फिर यह हमें अंधेरे में धकेल देगा?” यह सवाल रोहित के मन में गूंजता रहा। जवाब शायद वक्त ही देगा।